बाँके बिहारी जी के निधिवन की सच्ची घटना (The True Story of Banke Bihari Ji’s Treasure)

बाँके बिहारी जी के निधिवन की सच्ची घटना-

बाँके बिहारी जी के निधिवन की सच्ची घटना, ये बात है करीब 500 साल से भी पहले की जब श्री बाँके बिहारी जी अवतरित हुए थे | जब हरिदास जी निधिवन में बैठ कर कृष्ण और राधा रानी को भजन सुनते थे और

बाँके बिहारी जी के निधिवन की सच्ची घटना- Image credit-https://in.pinterest.com/

बाँके बिहारी जी के निधिवन की सच्ची घटना, ये बात है करीब 500 साल से भी पहले की जब श्री बाँके बिहारी जी अवतरित हुए थे | जब हरिदास जी निधिवन में बैठ कर कृष्ण और राधा रानी को भजन सुनते थे और ये हमे जो अपने बिहारी जी के दर्शन मिल रहे है कृपया मिल रही है इसका पूरा श्रेए भक्त वत्सल श्री हरिदास जी को जाता है | क्योंकि ये इन्ही के भक्ति भाव, व भजन के प्रताप थे जिनसे रीझ कर जिनके प्रभाव से हमारे श्री बाँके बिहारी जी स्वयं प्रकट हुए थे | जब श्री बाँके बिहारी जी प्रकट हुए तो तो हरिदस जी वही निधिवन में ही उनकी सेवा करते थे | और ये बात कुछ ही दिनों में 10 दिशाओ में फेल गई कि श्री हरिदास जी के प्रभाव से उनके भजन रस से बिहारी जी स्वयं प्रकट हुए है तो सब दर्शन करने आने लगे | ये बात लाहौर ( पाकिस्तान ) के एक सेठ को पता चला कि श्री वृन्दावन धाम में कुंज बिहारी जी प्रकट हुए है |

लाहौर के सेठ की कथा-

हमारे बिहारी जी को इत्र की सेवा बहुत ही प्रिय है | तो उस सेठ ने बिहारी जी अर्पित करने के लिए खास खसका का इत्र मगवाया और उसे एक सुंदर से सोने के पात्र में डाल कर निकाल पड़ा लाहौर से कुंज बिहारी जी को अर्पित करने के लिए | संतों द्वारा बताया जाता है कि उस इत्र (खसका इत्र) की सुगंध इतनी ज्यादा अच्छी थी कि वह सेठ जिस जिस नगर से निकलता था वहाँ के लोग अपने घरों में बैठे बैठे उस इत्र की सुगंधी की अनुभूति करते थे | जिससे लोग आपस में चर्चा करते थे कि भई ये सुगंधी आ कहा से रही है | तो लोगों को पता चला कि लाहौर (पाकिस्तान) का एक सेठ है जो श्री वृन्दावन धाम बाँके बिहारी जी के दर्शन के लिए जा रहा है उसने ही बिहारी जी को चड़ाने के लिए जो इत्र मगवाया है ये उसी की खुशबु है | संत बताते है की कई लोग तो उस इत्र के सुगंधी को सूंघ कर उसके संग हो लिए की चलो में भी चलूँगा श्री बाँके बिहारी जी के दर्शन के लिए | ऐसे करते करते हजारों भक्तों की टोली श्री धाम वृन्दावन पहुँच गए |

लेकिन वृन्दावन पहुंचते पहुंचते उस सेठ को थोड़ा सा मान आ गया की मैं ठाकुर जी के लिए सबसे विशेष इत्र लेकर आया हुँ जिसे देख सारा वृन्दावन आश्चर्य में हो जाए कि ऐसा उपहार ऐसा इत्र किसी ने भी बिहारी जी को नहीं चढ़ाई | जैसा मैं लेके आया हुँ | और जैसे ही निधिवन राज में उसने प्रवेश किया बिहारी जी को राज भोग लगाया गया था इसलिए पट बंद थे वहाँ उपस्थित रसिकाओ ने कहां भक्त जी अभी तो ठाकुर जी भोग लगो हो थोड़ा समय लगेगो दर्शन में और आप इतना समय क्या ही करोगे इक काम करो | यमुना किनारे स्वामी श्री हरिदास जी महराज जी अपनी मानसी सेवा में बैठे है तुम वहाँ जाके तब तक स्वामी जी को प्रणाम कर आओ | उसको पता नहीं था मानसी सेवा किसी कहते है | (मानसी सेवा– एक प्रकार की स्थिति होती है जहाँ ऐसा कहां जाता है कि भक्त प्रभु में इस कदर डूबा हुआ रहता है कि उसका शरीर तो वहाँ होता है लेकिन उसका चित वहाँ नहीं होता है )

तो जैसे ही वो लाहौर का भक्त वहाँ यमुना किनारे पहुंचा उसने देखा कि भक्त वत्सल श्री हरिदास जी मानसी सेवा में बैठे है कभी हिल रहे है कभी मुस्करा रहे है तो कभी कुछ अंदर ही अंदर ही कुंज की लीला चल रही है | तो उसने स्वामी जी को प्रणाम किया और समीप में वो इत्र की शीशी खोल कर रख दिया जिससे स्वामी जी को उसके सुगंधी से नेत्र खुले और स्वामी जी पूछे कि ये सुगंधी कहां से आई तो मई बताऊ कि मैं लेके आया हुँ बिहारी जी के लिए |

क्या हुआ जब श्री हरिदास जी ने इत्र को फेक दिया यमुना जी में –

लेकिन कुछ देर बाद स्वामी हरिदास जी ऐसे मानसी सेवा में ही अपने हाथ ऐसे रेत पर फेरने लगे जैसे कुछ ढूंढ रहे हो और जैसे ही उनके हाथ वो इत्र लगा स्वामी जी ने वो इत्र उठाया और उठाकर यमुना जी में फेक दिया | पूरे इत्र को स्वर्ण के पात्र के साथ ही यमुना जी में फेक दिया वो भक्त देखता रह गया और सोचने लगा इतना महंगा इत्र इतने महंगे पात्र में लेके आया और अभी तो बिहारी जी को चढ़ा भी नहीं था महाराज जी ने फेक दिया ये कैसा मानसी है ये कैसे महाराज जी है ये बिना सोचे फेक दिया | ऐसे सोचते सोचते वो कुछ पूछने के लिए स्वामी जी के पास जाने लगा तो वहाँ खड़े वैष्णव ने रोक दिया कि अभी स्वामी जी को स्पर्श नहीं करना | स्वामी जी मानसी में है लेकिन उसको तो पता ही नहीं था कि मानसी होती क्या है | और वो मन ही मन दुखी हो रहा था कि इतना महंगा इत्र था बिहारी जी को चढ़ा भी नहीं सब बेकार हो गया इतना पैसा तो अपने घर में लगा देता | मन ही मन विचार किया अभी चला जाऊंगा वापस और कभी नहीं आऊँगा वापस वृन्दायन |

भक्त सोच ही रहा था कि भक्त वत्सल श्री हरिदास जी अपने मानसी से बाहर आए तो उस भक्त ने उन्हे प्रणाम किया और जब श्री हरिदास जी ने उस भक्त को समीप बैठा देखा तो पूछा ठाकुर जी के दर्शन किए तो भक्त बोला अभी नहीं अभी तो राज भोग लगा है तो स्वामी श्री हरिदास जी ने कहां जाओ जल्दी दर्शन करके आओ पट खुल गए है बिहारी जी के | तो भक्त ने सोचा क्या ही बोलू महाराज जी से इत्र के बारे में इतने सारे भक्त खड़े है यहाँ में जाता हुँ वहाँ दर्शन करूंगा और वही से निकाल जाऊंगा वापस आऊँगा ही नहीं |

इत्र को को सम्पूर्ण निधिवन राज में देख आश्चर्य चकित रह गया भक्त –

भक्तों संत बताते है कि जैसे ही उसने निधिवन राज में प्रवेश किया तो वो आश्चर्य चकित रह गया क्योंकि निधिवन राज के प्रत्येक लता गुल्म पर वो इत्र छिड़का हुआ था और जैसे ही वो बिहारी जी के सम्मुख पहुंचा उसने देखा कि सघन कुंज में बिहारी जी के मुकुट से लेकर पैर के नख तक बिहारी जी के अंग से वो इत्र टपक रहा था | ऐसी लीला ऐसी कृपया को देख उस भक्त का देह में कंपन होने लगा | उसने बिहारी जी को प्रणाम किया और भागा भागा स्वामी श्री हरिदास जी के पास पहुंचा और बोला भगवन मैं आपकी लीला समझ नहीं पाया आपने मेरे इत्र को यमुना जी में प्रवाहित कर दिया तो निधिवन में वो इत्र ठाकुर जी को कैसे पहुंचा, वहाँ के सघन कुंज लताओ पर इत्र की बूँद क्यों है ? निधिवन उसी सुगंध से कैसे सुगंधित हो गया ? जब इत्र आपने यमुना जी में फेक दिया तो वहाँ कैसे पहुंचा ? मुझे बताइए भगवन नहीं तो ये दास पागल हो जाएगा ?

भक्त की विनती पर स्वामी श्री हरिदास जी ने अपनी मानसी सेवा उजागर किया | वैसे तो संत लोग अपनी मानसी सेवा काभी भी उजागर नहीं करते है लेकिन इस भक्त के भाव को देख स्वामी श्री हरिदास जी ने मानसी सेवा उजागर कर दी | स्वामी श्री हरिदास जी बोले- अरे! लाला तुम्हें का बताऊ मानसी में आज श्यामा श्याम दोनों होली खेल रहे थे | तो श्री किशोरी जी के पक्ष में तो मैं था | मैंने देखा की लाला ने जोर की पिचकारी मारी राधा रानी को तो किशोरी जी पूरी रंग गई तो मोसों बोली सखी सुन ऐसों चटक रंग लेके आ की मैं या कारे को और कारो कर दूँ | तभी में कुछ खोजने को निकलु की मुझे कोई चटक रंग मिल जाए तो मुझे तेरे द्वारा अर्पित वो इत्र मेरे हाथ में आ गई तो मैंने उसे उठाकर किशोरी जी को दे दिया और किशोरी जी ने श्याम सुंदर पर फेक दिहो तो ठाकुर जी को अर्पित हो गया |

बोल बाँके बिहारी लाल की जय, भक्त और भगवान की जय

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